10 जनवरी 2010

पंधेर ने ही पुलिस को पहुंचाया था कोली के घर तक

यह जानकार भी आप आश्चर्य में पड़ेंगे। दरअसल, पंधेर ने ही सुरेंद्र कोली का पूरा पता दिया और अपनी एक लग्जरी गाड़ी भी पुलिस को दी। साथ में ड्राइवर भी। चूंकि वह ड्राइवर कोली के घर जाने वाले रास्तों से वाकिफ था। इसलिए पुलिस की एक टीम पंधेर की गाड़ी से अल्मोड़ा पहुंची। वहां से किसी तरह पुलिस ने उसे हिरासत में लिया और गाड़ी में बिठाकर नोएडा आने लगे। 25 दिसंबर की शाम सभी लोग नोएडा पहुंचे। इससे पहले रास्ते में ही पुलिस ने सुरेंद्र की अच्छी खासी पुलिसिया खातिरदारी की। लेकिन उसने कुछ भी नहीं बताया। नोएडा में उसे पंधेर के सामने खड़ा किया। फिर भी उसकी जुबां चुप थी।
इसके बाद पुलिस ने उसे थर्ड डिग्री दी। फिर भी चुप। आखिरकार पुलिस टूट गई। लेकिन उसकी चुप्पी नहीं टूटी। उसके रवैये से पुलिस दंग रह गई। 27 दिसंबर भी निकल गया। आखिरकार, मुर्दे से भी उगलवाने वाले दरोगाओं को आजमाया गया। तब सुरेंद्र कोली की जुबां चली। जवाब दिया, हां मैने पायल को मार दिया। क्यों? सवाल पूछा गया। बताया- कि वो अक्सर पंधेर के पास आती थी। उसे मैने कई बार उत्तेजक स्थिति में देखा था। मुझसे भी काफी करीब से बातचीत करती थी। इसलिए पंधेर के नहीं होने पर फोन कर घर पर बुला लिया। वह आ भी गई। उससे सौदा किया। मेरे पास महज पांच सौ रुपये थे। लेकिन वह इतने कम रुपये में नहीं तैयार हुई। कई बार कहा। फिर भी नहीं। आखिर कब तक सुनता। गुस्सा आ गया। बहाना बनाया चाय पिलाने का। उसे कुर्सी पर बिठा दिया। थोड़ी देर बाद कुछ लेेने के बहाने उसके पीछे आया और उसके दुपट्टे से ही गला घोंटने लगा। विरोध किया। लेकिन मेरे खौफ के आगे वह खामोश हो गई। इसके बाद उसके साथ सेक्स किया। वह काफी बड़ी थी इसलिए उसके शव को तीन भाग में कर कोठी के पीछे फेंक दिया। उसके पास रखा मोबाइल फोन अपने पास रख लिया। यह सब पता लगाने में 28 दिसंबर की शाम हो गई।
28 दिसंबर की रात में ही पुलिस कोठी के पिछवाड़े पहुंची। यहां पहले पायल की सैंडिल मिली। पुलिस को यकीन हो गया। उसने जो कहा वह सच है। मांस के लोथड़े भी मिले। इस दौरान तक एक गांव वाले ने देख लिया था। लेकिन रात होने की वजह से उसने भी कुछ नहीं कहा। पुलिस ने भी रात में कोठी के पीछे ज्यादा खोजबीन करना मुनासिब नहीं समझा। यहीं पुलिस से चूक हुई। जिसके खामियाजे के रूप में पुलिस की वर्दी पर हमेशा के लिए ऐसा दाग लगा कि जिसे कभी भी मिटाया नहीं जा सकता। कभी भी नहीं। अगर पुलिस ने यहां तत्परता दिखाई होती और रात में खोजबीन करती तो 29 दिसंबर 2006 को नोएडा पुलिस का यह सबसे बड़ा गुडवर्क होता। मीडिया, पुलिस के खुलासे की सराहना करती। हां, टांग खींचना तो हमलोगों की फितरत है। उससे बाज नहीं आते। लेकिन फिर भी पुलिस जब खुद सब कुछ बताती तो संदेश गुडवर्क का ही जाता। पर पुलिस वालों के लिए काला दिन साबित हुआ।

दर्जनों ककंाल मिले तब शक गहराया

दरअसल, 29 दिसंबर की सुबह तक यह नहीं पता था कि निठारी से गायब हो रहे बच्चों के भी तार कोठी नंबर डी-5 से ही जुड़े हैं। लेकिन भनक लगते ही गांव वालों ने ही कोठी के पीछे खुदाई शुरू कर दी। इस दौरान बच्चों के कंकाल भी मिले। कपड़े और चप्पलें भी। इससे पुलिस का शक अब यकीन में बदलने लगा। पुलिस ने तुरंत सुरेंद्र कोली से पूछताछ शुरू की। लेकिन इस बार शुरुआत में ही उसे पुलिसिया डोज दे दिया गया। लिहाजा, उसने चार से पांच बच्चों को मारने की स्वीकार की। लेकिन इस बार पुलिस को विश्वास हो चुका था कि लापता हुए सभी बच्चे नौकर के शिकार हुए हैं। पुलिस ने बच्चों के फोटो दिखाने शुरू किए तो उसने एक-एक कर 17 बच्चों को मारने की बात कबूल कर ली।

पंधेर के शामिल होने से किया था इनकार

नौकर सुरेंद्र कोली ने ही पंधेर को किसी भी बच्चे के अपहरण, रेप और हत्या के मामले में शामिल होने से इनकार किया था। पूछताछ के दौरान उसने यह बात स्वीकार की थी। उसकी सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने अलग-अलग पूछताछ की। ताकी वह किसी तरह के प्रेशर में रहे। इसके बावजूद उसने पंधेर को अपना साथी नहीं बताया। हां, इतना जरूर बताया था कि उसकी अय्याशी देखकर ही वह विकृत हुआ। वह पिछले एक साल से पंधेर की अय्याशी देखते-देखते उसकी विकृति बढ़ गई। इसलिए वह पंधेर की $गैर मौजूदगी में बच्चियों को बुलाकर उन्हें हवस का शिकार बनाने में जुट गया।

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