21 साल की लड़की पायल के 7 मई 2006 को निठारी से गायब होने की सूचना से पुलिस चौक गई थी। क्योंकि इससे पहले निठारी से गायब हुई सभी बच्चियां थीं। इस तरह जांच दो दिशाओं में बंट गई। एक बच्चों के लापता और दूसरा पायल की गुमशुदगी की तरफ। चूंकि मामला निठारी से जुड़ा था, इसलिए लापता बच्चों की जांच में जुटी पुलिस टीम को इस केस की फाइल भी पकड़ा दी गई। इस बारे में पायल के पिता नंदलाल लगातार पुलिस पर खोजबीन का दबाव बना रहे थे। पुलिस को जानकारी मिली कि पायल के पास एक मोबाइल फोन था। वह अब स्विच ऑफ आता है। इसलिए पुलिस ने उस नंबर की कॉल डिटेल निकलवाई। कॉल डिटेल में मुंबई से लेकर तमाम जगहों के नंबर पर थे। पुलिस ने उन नंबरों की जांच की। लेकिन हर जगह से पुलिस खाली हाथ लौट आई। एक खास नंबर पर कई इनकमिंग और आउट गोइंग कॉल देखकर पुलिस ने उस पर बातचीत की। वह नंबर मोनिंदर सिंह का पंधेर का निकला।
पुलिस ने उससे पूछताछ की तो उसने यह बताकर पल्ला झाड़ लिया कि नौकरी के लिए वह आती रहती थी। चूंकि पंधेर की गिनती बड़े रईसजादों में होती थी। इसलिए पुलिस उससे कड़ाई से पूछताछ नहीं कर पाती थी। लेकिन पायल का जब कहीं सुराग नहीं मिला तब जांच टीम ने पंधेर का देसी अंदाज में नार्को टेस्ट करने के लिए पुलिस अधिकारियों से इजाजत मांगी। जांच में जुटे तत्कालीन सीओ दिनेश यादव ने इसकी इजाजत दे दी।
3 दिसंबर 2006 को मोनिंदर सिंह पंधेर को सेक्टर-6 स्थित सीओ ऑफिस बुलाया गया। यहां पहले से ही पायल के पिता नंदलाल को भी बुलाया गया था। पंधेर के आने पर उसे एक कमरे में कैद कर लिया गया। जांच टीम ने उससे देसी नार्को टेस्ट के अंदाज में इंजेक्शन की जगह गालियों की डोज दी। पंधेर भी सकपका गया। आखिरकार उसने यह बात स्वीकार की कि पायल उसकी कोठी पर आती थी। पंधेर ने यह खुलासा किया कि पायल एक कॉलगर्ल थी।
आप क्या जानते हैं निठारी के बारे में..... कितना जानते हैं...... उससे कहीं ज्यादा मिलेगा यहां आपको....एक-एक सच...आंखों देखा सच.... परत-दर-परत....
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